Ad

Kharif Crop

अरबी की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

अरबी की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

अरबी गर्मी की फसल है, इसका उत्पादन गर्मी और वर्षा ऋतू में किया जाता है। अरबी की तासीर ठंडी रहती है। इसे अलग अलग नामों से जाना जाता है जैसे अरुई , घुइया , कच्चु और घुय्या आदि है।

यह फसल बहुत ही प्राचीन काल से उगाई जा रही है। अरबी का वानस्पातिक नाम कोलोकेसिया एस्कुलेंटा है। अरबी प्रसिद्ध और सबसे परिचित वनस्पति है, इसे हर कोई जानता है। सब्जी के अलावा इसका उपयोग औषिधीय में भी किया जाता है।  

अरबी का पौधा सदाबहार साथ ही शाकाहारी भी है। अरबी का पौधा 3 -4 लम्बा होता है , इसकी पत्तियां भी चौड़ी होती है। अरबी सब्जी का पौधा है, जिसकी जड़ें और पत्तियां दोनों ही खाने योग्य रहती है। 

इसके पत्ते हल्के हरे रंग के होते है, उनका आकर दिल के भाँती दिखाई पड़ता है। 

अरबी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

अरबी की खेती के लिए जैविक तत्वों से भरपूर मिट्टी की  जरुरत रहती है। इसीलिए इसके लिए रेतीली और दोमट मिट्टी को बेहतर माना जाता है। 

ये भी पढ़ें: अरबी की बुवाई का मौसम : फरवरी-मार्च और जून-जुलाई, सम्पूर्ण जानकारी

इसकी खेती के लिए भूमि का पी एच मान 5 -7 के बीच में होना चाहिए। साथ ही इसकी उपज के लिए बेहतर जल निकासी  वाली भूमि की आवश्यकता पड़ती है। 

अरबी की उन्नत किस्में 

अरबी की कुछ उन्नत किस्में इस प्रकार है, जो किसानों को मुनाफा दिला सकती है। सफ़ेद गौरिया, पंचमुखी, सहस्रमुखी, सी -9, श्री पल्लवी, श्री किरन, श्री रश्मी आदि प्रमुख किस्में है, जिनका उत्पादन कर किसान लाभ उठा सकता है। 

अरबी -1 यह किस्म छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए अनुमोदित की गयी है, इसके अलावा नरेंद्र - 1 भी अरबी की अच्छी किस्म है। 

अरबी की खेती का सही समय 

किसान साल भर में अरबी की फसल से दो बार मुनाफा कमा सकते है। यानी साल में दो बार अरबी की फसल उगाई जा सकती है एक तो रबी सीजन में और दूसरी खरीफ के सीजन में। 

रबी के सीजन में अरबी की फसल को अक्टूबर माह में बोया जाता है और यह फसल अप्रैल से मई माह के बीच में पककर तैयार हो जाती है। 

यही खरीफ के सीजन में अरबी की फसल को जुलाई माह में बोया जाता है, जो दिसंबर और जनवरी माह में तैयार हो जाती है। 

उपयुक्त वातावरण और तापमान 

जैसा की आपको बताया गया अरबी गर्मी की फसल है। अरबी की फसल को सर्दी और गर्मी दोनों में उगाया जा सकता है। लेकिन अरबी की फसल के पैदावार के लिए गर्मी और बारिश के मौसम को बेहतर माना जाता है। 

इन्ही मौसम में अरबी की फसल अच्छे से विकास करती है। लेकिन गर्मी में पड़ने वाला अधिक तापमान भी फसल को नष्ट कर सकता है साथ ही सर्दियों के मौसम में पड़ने वाला पाला भी अरबी की फसल के विकास को रोक सकता है। 

अरबी की खेती के लिए कैसे करें खेत को तैयार ?

अरबी की खेती के लिए अच्छे जलनिकास वाली और दोमट मिट्टी की आवश्यकता रहती है। खेत में जुताई करने के 15 -20 दिन पहले खेत में 200 -250 क्विंटल खाद को डाल दे।

ये भी पढ़ें: खरीफ सीजन क्या होता है, इसकी प्रमुख फसलें कौन-कौन सी होती हैं

उसके बाद खेत में 3 -4 बार जुताई करें , ताकि खाद अच्छे से खेत में मिल जाए। अरबी की बुवाई का काम किसानों द्वारा दो तरीको से किया जाता है।  पहला मेढ़ बनाकर और दूसरा क्वारियाँ बनाकर। 

खेत को तैयार करने के बाद किसानों द्वारा खेत में 45 से.मी की दूरी पर मेढ़ बना दी जाती है।  वही क्यारियों में बुवाई करने के लिए पहले खेत को पाटा लगाकर समतल बनाया जाता है। 

उसके बाद 0.5 से.मी की गहरायी पर इसके कंद की बुवाई कर दी जाती है। 

बीज की मात्रा 

अरबी की बुवाई कंद से की जाती है , इसीलिए प्रति हेक्टेयर में कंद की 8 -9 किलोग्राम मात्रा की जरुरत पड़ती है। अरबी की बुवाई से पहले कंद को पहले मैंकोजेब 75 % डब्ल्यू पी 1 ग्राम को पानी में मिलाकर 10 मिनट तक रख कर बीज उपचार करना चाहिए। 

बुवाई के वक्त क्यारियों के बीच की दूरी 45 से.मी और पौधो की दूरी 30 से.मी और कंद की बुवाई 0.5 से.मी की गहराई में की जाती है।  

अरबी की खेती के लिए उपयुक्त खाद एवं उर्वरक 

अरबी की खेती करते वक्त ज्यादातर किसान गोबर खाद का प्रयोग करते है ,जो की फसल की उत्पादकता के लिए बेहद फायदेमंद रहता है।  लेकिन किसानों द्वारा अरबी की फसल के विकास लिए उर्वरको का उपयोग किया जाता है। 

किसान रासायनिक उर्वरक फॉस्फोरस 50 किलोग्राम , नत्रजन 90 -100 किलोग्राम और पोटाश 100 किलोग्राम का उपयोग करें, इसकी आधी मात्रा को खेत की बुवाई करते वक्त और आधी मात्रा को बुवाई के एक माह बाद डाले। 

ये भी पढ़ें: कृषि वैज्ञानिकों की जायद सब्जियों की बुवाई को लेकर सलाह

ऐसा करने से फसल में वृद्धि होगी और उत्पादन भी ज्यादा होगा। 

अरबी की फसल में सिंचाई 

अरबी की फसल यदि गर्मी के मौसम बोई गयी है ,तो उसे ज्यादा पानी आवश्यकता पड़ेगी। गर्मी के मौसम में अरबी की फसल को लगातार 7 -8  दिन लगातार पानी देनी की जरुरत रहती है। 

यदि यही अरबी की फसल बारिश के मौसम में की गयी है ,तो उसे कम पानी की जरुरत पड़ती है। अधिक सिंचाई करने पर फसल के खराब होने की भी संभावनाएं रहती है। 

सर्दियों के मौसम में भी अरबी को कम पानी की जरुरत पड़ती है। इसकी हल्की  सिंचाई  15 -20 के अंतराल पर की जाती है।  

अरबी की फसल की खुदाई 

अरबी की फसल की खुदाई उसकी किस्मों के अनुसार होती है , वैसे अरबी की फसल लगभग 130 -140  दिन में पककर तैयार हो जाती है। जब अरबी की फसल अच्छे से पक जाए उसकी तभी खुदाई करनी चाहिए।

अरबी की बहुत सी किस्में है जो अच्छी उपज होने पर प्रति हेक्टेयर में 150 -180 क्विंटल की पैदावार देती है।  बाजार में अरबी की कीमत अच्छी खासी रहती है। 

अरबी की खेती कर किसान प्रति एकड़ में 1.5 से 2 लाख रुपए की कमाई कर सकता है। 

अरबी की खेती कर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकती है।  साथ ही कीट और रोगों से दूर रखने के लिए किसान रासायनिक उर्वरको का भी उपयोग कर सकते है।

साथ ही फसल में खरपतवार जैसी समस्याओ को भी नियंत्रित करने के लिए समय समय पर गुड़ाई और नराई का भी काम करना चाहिए। 

इससे फसल अच्छी और ज्यादा होती है, ज्यादा उत्पादन के लिए किसान फसल चक्र को भी अपना सकता है। 

जून में उगाई जाने वाली फसलों की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

जून में उगाई जाने वाली फसलों की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

खेती किसानी में बहुत से आतंरिक और बाहरी कारक फसलीय उत्पादन को प्रभावित करते हैं। इनमें से एक प्रमुख कारक फसल बुवाई के समय का चयन करना है। 

किसान भाइयों को बेहतर उपज हांसिल करने के लिए हर एक माह के मुताबिक फसलों की बुवाई और कृषि कार्य करना चाहिए। साथ ही, फसल की बुवाई के लिए उन्नत किस्मों का चुनाव करना चाहिए, 

ताकि बंपर उत्पादन हांसिल किया जा सके। ऐसे में कृषकों के पास प्रति महीने कृषि कार्यों की जानकारी होनी चाहिए, ताकि ज्यादा उपज के साथ उच्च गुणवत्ता प्राप्त हो सके।

भारत में मौसम के आधार पर भिन्न-भिन्न फसलों की खेती की जाती है। इसी प्रकार प्रत्येक महीने मौसम को मद्देनजर रखते हुए अलग-अलग कृषि कार्य भी किया जाता है, ताकि फसलों की सही ढ़ंग से देखभाल की जा सके। 

इससे फसल की अच्छी-खासी वृद्धि होती है। साथ ही, उपज की गुणवत्ता में भी सुधार होता है। ऐसे में आवश्यक है, कि कृषकों को मौसम के आधार पर किए जाने वाले कृषि कार्यों की सटीक जानकारी होनी चाहिए।

धान की नर्सरी से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी 

यदि किसान भाई मई के अंतिम सप्ताह में धान की नर्सरी नहीं लगा पाए हैं, तो जून के प्रथम सप्ताह तक यह कार्य पूर्ण कर लें। वहीं, सुगंधित किस्मों की नर्सरी जून के तीसरे सप्ताह तक लगा लें। 

धान की मध्यम और देरी से पकने वाली किस्मों को काफी अच्छा माना गया है। इसमें स्वर्ण, पंत-10, सरजू-52, नरेन्द्र-359, जबकि टा.-3, पूसा बासमती-1, हरियाणा बासमती सुगंधित एवं पंत संकर धान-1 तथा नरेन्द्र संकर धान-2 प्रमुख उन्नत संकर किस्में हैं। 

धान की बारीक किस्मों के लिए प्रति हेक्टेयर बीज दर 30 किलोग्राम, मध्यम धान के लिए 35 किलोग्राम, मोटे धान के लिए 40 किलोग्राम और बंजर भूमि के लिए 60 किलोग्राम, जबकि संकर किस्मों के लिए 20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है। 

ये भी पढ़ें: किसान पूसा से धान की इन किस्मों का बीज अब ऑनलाइन खरीद सकते हैं

अगर नर्सरी में खैरा रोग नजर आए तो 20 ग्राम यूरिया, 5 ग्राम जिंक सल्फेट प्रति लीटर पानी में घोलकर 10 वर्ग मीटर क्षेत्र में छिड़काव करना चाहिए।

मक्का की जून में बुवाई से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी   

जून में मक्का की खेती से किसान अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं। इसलिए अगर आप मक्का की बुवाई करना चाहते हैं, तो इसकी बुवाई 25 जून तक कर लेनी चाहिए। अगर सिंचाई की सुविधा हो तो इसकी बुवाई 15 जून तक भी की जा सकती है। 

मक्का की उन्नत किस्मों में शक्तिमान-1, एच.क्यू.पी.एम.-1, तरुण, नवीन, कंचन, श्वेता और जौनपुरी की सफेद और मेरठ की पीली स्थानीय किस्में अच्छी मानी जाती हैं।

किसान पशु चारा की फसलों की बुवाई करें  

पशुओं के लिए हरे चारे का अभाव ना हो इसलिए आप इस महीने में ज्वार, लोबिया और चरी जैसे चारे वाली फसलों की बुवाई कर सकते हैं। बारिश न होने की स्थिति में खाद देकर बुवाई की जा सकती है। 

जून के महीने में किसान इन सब्जियों की खेती करें

जून के महीने में आप बैंगन, मिर्च, अगेती फूलगोभी की रोपाई कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त लौकी, खीरा, चिकनी तोरी, सावन तोरी, करेला और टिंडा की बुवाई भी इसी माह की जा सकती है। 

भिंडी की उन्नत किस्मों में परभणी क्रांति, आजाद भिंडी, अर्का अनामिका, वर्षा, उपहार, वी.आर.ओ.-5, वी.आर.ओ.-6 और आईआईवीआर-10 अच्छी मानी जाती है।

अरहर की खेती (Arahar dal farming information in hindi)

अरहर की खेती (Arahar dal farming information in hindi)

दोस्तों आज हम बात करेंगे अरहर की दाल के विषय पर, अरहर की दाल को बहुत से लोग तुअर की दाल भी कहते हैं। अरहर की दाल बहुत खुशबूदार और जल्दी पच जाने वाली दाल कही जाती है। 

अरहर की दाल से जुड़ी सभी आवश्यक बातों को भली प्रकार से जानने के लिए हमारे इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहे:

अरहर की दाल का परिचय:

आहार की दृष्टिकोण से देखे तो अरहर की दाल बहुत ही ज्यादा उपयोगी होती है। क्योंकि इसमें विभिन्न प्रकार के आवश्यक तत्व मौजूद होते हैं जैसे: खनिज, कार्बोहाइड्रेट, लोहा, कैल्शियम आदि भरपूर मात्रा में मौजूद होता है। 

अरहर की दाल को रोगियों को खिलाना लाभदायक होता है। लेकिन जिन लोगों में गैस कब्ज और सांस जैसी समस्या हो उनको अरहर दाल का सेवन थोड़ा कम करना होगा। 

अरहर की दाल शाकाहारी भोजन करने वालो का मुख्य साधन माना जाता है शाकाहारी अरहर दाल का सेवन बहुत ही चाव से करते हैं।

अरहर दाल की फसल के लिए भूमि का चयन:

अरहर की फ़सल के लिए सबसे अच्छी भूमि हल्की दोमट मिट्टी और हल्की प्रचुर स्फुर वाली भूमि सबसे उपयोगी होती है। यह दोनों भूमि अरहर दाल की फसल के लिए सबसे उपयुक्त होती हैं। 

बीज रोपण करने से पहले खेत को अच्छी तरह से दो से तीन बार हल द्वारा जुताई करने के बाद, हैरो चलाकर खेतों की अच्छी तरह से जुताई कर लेना चाहिए। 

अरहर की फ़सल को खरपतवार से सुरक्षित रखने के लिए जल निकास की व्यवस्था को बनाए रखना उचित होता है। तथा पाटा चलाकर खेतों को अच्छी तरह से समतल कर लेना चाहिए। अरहर की फसल के लिए काली भूमि जिसका पी.एच .मान करीब 7.0 - 8. 5 सबसे उत्तम माना जाता है।

ये भी पढ़ें: सोयाबीन, कपास, अरहर और मूंग की बुवाई में भारी गिरावट के आसार, प्रभावित होगा उत्पादन

अरहर दाल की प्रमुख किस्में:

अरहर दाल की विभिन्न विभिन्न प्रकार की किस्में उगाई जाती है जो निम्न प्रकार है:

  • 2006 के करीब, पूसा 2001 किस्म का विकास हुआ था। या एक खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली किस्म है। इसकी बुवाई में करीब140 से लेकर 145 दिनों का समय लगता है। प्रति एकड़ जमीन में या 8 क्विंटल फ़सल की प्राप्ति होती है।
  • साल 2009 में पूसा 9 किस्म का विकास हुआ था। इस फसल की बुवाई खरीफ रबी दोनों मौसम में की जाती है। या फसल देर से पकती है 240 दिनों का लंबा समय लेती है। प्रति एकड़ के हिसाब से 8 से 10 क्विंटल फसल का उत्पादन होता है।
  • साल 2005 में पूसा 992 का विकास हुआ था। यह दिखने में भूरा मोटा गोल चमकने वाली दाल की किस्म है।140 से लेकर 145 दिनों तक पक जाती है प्रति एकड़ भूमि 6.6 क्विंटल फसल की प्राप्ति होती है। अरहर दाल की इस किस्म की खेती पंजाब, हरियाणा, पश्चिम तथा उत्तर प्रदेश दिल्ली तथा राजस्थान में होती है।
  • नरेंद्र अरहर 2, दाल की इस किस्म की बुवाई जुलाई मे की जाती हैं। पकने में 240 से 250 दिनों का टाइम लेती है। इस फसल की खेती प्रति एकड़ खेत में 12 से 13 कुंटल होती है। बिहार, उत्तर प्रदेश में इस फसल की खेती की जाती।
  • बहार प्रति एकड़ भूमि में10 से 12 क्विंटल फसलों का उत्पादन होता है। या किस्म पकने में लगभग 250 से 260 दिन का समय लेती है।
  • दाल की और भी किस्म है जैसे, शरद बी आर 265, नरेन्द्र अरहर 1और मालवीय अरहर 13,

आई सी पी एल 88039, आजाद आहार, अमर, पूसा 991 आदि दालों की खेती की प्रमुख है।

ये भी पढ़ें: संतुलित आहार के लिए पूसा संस्थान की उन्नत किस्में

अरहर दाल की फ़सल बुआई का समय:

अरहर दाल की फसल की बुवाई अलग-अलग तरह से की जाती है। जो प्रजातियां जल्दी पकती है उनकी बुवाई जून के पहले पखवाड़े में की जाती है विधि द्वारा। 

दाल की जो फसलें पकने में ज्यादा टाइम लगाती है। उनकी बुवाई जून के दूसरे पखवाड़े में करना आवश्यक होता है। दाल की फसल की बुवाई की प्रतिक्रिया सीडडिरल यह फिर हल के पीछे चोंगा को बांधकर पंक्तियों द्वारा की जाती है।

अरहर दाल की फसल के लिए बीज की मात्रा और बीजोपचार:

जल्दी पकने वाली जातियों की लगभग 20 से 25 किलोग्राम और धीमे पकने वाली जातियों की 15 से 20 किलोग्राम बीज /हेक्टर बोना चाहिए। 

जो फसल चैफली पद्धति से बोई जाती हैं उनमें बीजों की मात्रा 3 से 4 किलो प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है। फसल बोने से पहले करीब फफूदनाशक दवा का इस्तेमाल 2 ग्राम थायरम, 1 ग्राम कार्बेन्डेजिम यह फिर वीटावेक्स का इस्तेमाल करे, लगभग 5 ग्राम ट्रयकोडरमा प्रति किलो बीज के हिसाब से प्रयोग करना चाहिए। 

उपचारित किए हुए बीजों को रायजोबियम कल्चर मे करीब 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करने के बाद खेतों में लगाएं।

ये भी पढ़ें: अरहर की फसल को रोगों से बचाएं

अरहर की फसल की निंदाई-गुडाईः

अरहर की फसल को खरपतवार से सुरक्षित रखने के लिए पहली निंदाई लगभग 20 से 25 दिनों के अंदर दे, फूल आने के बाद दूसरी निंदाई शुरू कर दें। खेतों में दो से तीन बार कोल्पा चलाने से अच्छी तरह से निंदाई की प्रक्रिया होती है।

तथा भूमि में अच्छी तरह से वायु संचार बना रहता है। फसल बोने के नींदानाषक पेन्डीमेथीलिन 1.25 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व / हेक्टर का इस्तेमाल करे। नींदानाषक का इस्तेमाल करने के बाद नींदाई करीब 30 से 40 दिन के बाद करना आवश्यक होता है।

अरहर दाल की फसल की सिंचाईः

किसानों के अनुसार यदि सिंचाई की व्यवस्था पहले से ही उपलब्ध है, तो वहां एक सिंचाई फूल आने से पहले करनी चाहिए। 

तथा दूसरे सिंचाई की प्रक्रिया खेतों में फलिया की अवस्था बन जाने के बाद करनी चाहिए। इन सिंचाई द्वारा खेतों में फसल का उत्पादन बहुत अच्छा होता है।

ये भी पढ़ें: भूमि विकास, जुताई और बीज बोने की तैयारी के लिए उपकरण

अरहर की फसल की सुरक्षा के तरीके:

कीटो से फसलों की सुरक्षा करने के लिए क्यूनाल फास या इन्डोसल्फान 35 ई0सी0, 20 एम0एल का इस्तेमाल करें। फ़सल की सुरक्षा के लिए आप क्यूनालफास, मोनोक्रोटोफास आदि को पानी में घोलकर खेतों में छिड़काव कर सकते हैं।

इन प्रतिक्रियाओं को अपनाने से खेत कीटो से पूरी तरह से सुरक्षित रहते हैं। दोस्तों हम उम्मीद करते हैं, कि आपको हमारा या आर्टिकल अरहर पसंद आया होगा। 

हमारे इस आर्टिकल में अरहर से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक जानकारियां मौजूद हैं। जो आपके बहुत काम आ सकती है। 

यदि आप हमारी दी गई जानकारियों से संतुष्ट है तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों के साथ और सोशल मीडिया पर शेयर करें। धन्यवाद।

बाजरा देगा कम लागत में अच्छी आय

बाजरा देगा कम लागत में अच्छी आय

बाजरा खरीफ की मुख्य फसल है लेकिन अब इसे रबी सीजन में भी कई इलाकों में लगाया जाता है। गर्मियों में इसमें रोग भी कम आते हैं और साल भर यह खाद्य सुरक्षा में भी योगदान दे पाता है। इसके लिए यह जानना जरूरी है कि बाजरे की उन्नत खेती कैसे करें 

बाजरे की आधुनिक, वैज्ञानिक खेती

बाजरा कोस्टल क्राप है और किसी भी कोस्टल क्राप में पोषक तत्व गेहूं जैसी सामान्य फसलों के मुकाबले कहीं ज्यादा होते हैं। बाजरा की हाइब्रिड किस्मों का उत्पादन गेहूं की खेती से ज्यादा लाभकारी हो रहा हैं। कम पानी और उर्वरकों की मदद से इसकी खेती हो जाती है। अन्न के साथ साथ यह पशुओं को हरा और सूखा भरपूर चारा भी दे जाता है। बाजरे के दाने में 11.6 प्रतिशत प्रोटीन, 5.0 प्रतिशत वसा, 67.0 प्रतिशत कार्बोहाइडेट्स एवं 2.7 प्रतिशत खनिज लवण होते हैं। इसकी खेती के लिए दोमट एवं जल निकासी वाली मृदा उपयुक्त रहती है। रेगिस्तानी इलाकों में सूखी बुबाई कर पानी लगाने की व्यवस्था करें। एक हैक्टेयर खेत की बुवाई के लिए 4 से 5 कि.ग्रा. प्रमाणित बीज पर्याप्त रहता है। 

बाजरे की उन्नत किस्में, संकर

bajra kisme   

बाजरा की संकर किस्में ज्यादा प्रचलन में हैं। इनमें राजस्थान के लिए आरएचडी 21 एवं 30,उत्तर प्रदेश के लिए पूसा 415,हरियाणा एचएचबी 505,67 पूसा 123,415,605,322, एचएचडी 68, एचएचबी 117 एवं इम्प्रूब्ड, गुजरात के लिए पूसा 23, 605, 415,322, जीबीएच 15, 30,318, नंदी 8, महाराष्ट्र के लिए पूसा 23, एलएलबीएच 104, श्रद्धा, सतूरी, कर्नाटक पूसा 23 एवं आंध्र प्रदेश के लिए आईसीएमबी 115 एवं 221 किस्म उपयुक्त हैं। बाजार में प्राईवेट कंपनियों जिनमें पायोनियर, बायर, महको, आदि की अनेक किस्में किसानों द्वारा लगाई जाती हैं। आरएचबी 177 किस्म जोगिया रोग रोधी तथा शीघ्र पकने वाली है। औसत पैदावार लगभग 10-20 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तथा सूखे चारे की पैदावार 40-45 क्विंटल है। आरएचबी 173 किस्म 75-80 दिन, आरएचबी 154 बाजरे की किस्म देश के अत्यन्त शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों के लिये अधिसूचित है। 70-75 दिन में पकती है। आईसीएमएच 356- यह सिंचित एवं बारानी, उच्च व कम उर्वरा भूमि के लिए उपयुक्त, 75-80 दिन में पकने वाली संकर किस्म हैं। तुलासिता रोग प्रतिरोधी इस किस्म की औसत उपज 20-26 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। आईसीएमएच 155 किस्म 80-100 दिन में पककर 18-24 क्विंटल उपज देती है। एचएचबी 67 तुलासिता रोग रोधक है। 80-90 दिन में पककर 15-20 क्विंटल उपज देती है।

 

बीजोपचार

 

 बीज को नमक के 20 प्रतिशत घोल में लगभग पांच मिनट तक डुबो कर गून्दिया या चैंपा से फसल को बचाया जा सकता हैं। हल्के बीज व तैरते हुए कचरे को जला देना चाहिये। तथा शेष बचे बीजों को साफ पानी से धोकर अच्छी प्रकार छाया में सुखाने के बाद बोने के काम में लेना चाहिये। उपरोक्त उपचार के बाद प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम थायरम दवा से उपचारित करें। दीमक के रोकथाम हेतु 4 मिलीलीटर क्लोरीपायरीफॉस 20 ई.सी. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें। 

बुवाई का समय एवं विधि

  bajra kheti 

 बाजरा की मुख्य फसल की बिजाई मध्य जून से मध्य जुलाई तक होती है वहीं गर्मियों में बाजारा की फसल लगाने के लिए मार्च में बिजाई होती है। बीज को 3 से 5 सेमी गहरा बोयें जिससे अंकुरण सफलतार्पूवक हो सके। कतार से कतार की दूरी 40-45 सेमी तथा पौधे से पौधे की दरी 15 सेमी रखें। 

खाद एवं उर्वरक

बाजरा की बुवाई के 2 से 3 सप्ताह पहले 10-15 टन गोबर की खाद प्रति हैक्टेयर की दर से देना चाहिए। पर्याप्त वर्षा वाले इलाकों में अधिक उपज के लिए 90 कि.ग्रा. नाइटोजन एवं 30 कि.ग्रा. फॉस्फोरस प्रति हैक्टेयर की दर से दें।

 

खरपतवार नियंत्रण

बाजरा की बुवाई के 3-4 सप्ताह तक खेत में निडाई कर खरपतवार निकाल लें। आवश्यकतानुसार दूसरी निराई-गुड़ाई के 15-20 दिन पश्चात् करें। जहां निराई सम्भव न हो तो बाजरा की शुद्ध फसल में खरपतवार नष्ट करने हेतु प्रति हेक्टेयर आधा कि.ग्रा. एट्राजिन सक्रिय तत्व का 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

 

सिंचाई

 

 बाजरा की सिंचित फसल की आवश्यकतानुसार समय-समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए। पौधे में फुटान होते समय, सिट्टे निकलते समय तथा दाना बनते समय भूमि में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए।

ज्वार की खेती में बीजोपचार और इसमें लगने वाले कीट व रोगों की रोकथाम से जुड़ी जानकारी

ज्वार की खेती में बीजोपचार और इसमें लगने वाले कीट व रोगों की रोकथाम से जुड़ी जानकारी

रबी की फसलों की कटाई प्रबंधन का कार्य कर किसान भाई अब गर्मियों में अपने पशुओं के चारे के लिए ज्वार की बुवाई की तैयारी में हैं। 

अब ऐसे में आपकी जानकारी के लिए बतादें कि बेहतर फसल उत्पादन के लिए सही बीज मात्रा के साथ सही दूरी पर बुआई करना बहुत जरूरी होता है। 

बीज की मात्रा उसके आकार, अंकुरण प्रतिशत, बुवाई का तरीका और समय, बुआई के समय जमीन पर मौजूद नमी की मात्रा पर निर्भर करती है। 

बतादें, कि एक हेक्टेयर भूमि पर ज्वार की बुवाई के लिए 12 से 15 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन, हरे चारे के रूप में बुवाई के लिए 20 से 30 किलोग्राम बीजों की आवश्यकता पड़ती है। 

ज्वार के बीजों की बुवाई से पूर्व बीजों को उपचारित करके बोना चाहिए। बीजोपचार के लिए कार्बण्डाजिम (बॉविस्टीन) 2 ग्राम और एप्रोन 35 एस डी 6 ग्राम कवकनाशक दवाई प्रति किलो ग्राम बीज की दर से बीजोपचार करने से फसल पर लगने वाले रोगों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। 

इसके अलावा बीज को जैविक खाद एजोस्पाइरीलम व पी एस बी से भी उपचारित करने से 15 से 20 फीसद अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है।

इस प्रकार ज्वार के बीजों की बुवाई करने से मिलेगी अच्छी उपज ?

ज्वार के बीजों की बुवाई ड्रिल और छिड़काव दोनों तरीकों से की जाती है। बुआई के लिए कतार के कतार का फासला 45 सेंटीमीटर रखें और बीज को 4 से 5 सेंटीमीटर तक गहरा बोयें। 

अगर बीज ज्यादा गहराई पर बोया गया हो, तो बीज का जमाव सही तरीके से नहीं होता है। क्योंकि, जमीन की उपरी परत सूखने पर काफी सख्त हो जाती है। कतार में बुआई देशी हल के पीछे कुडो में या सीडड्रिल के जरिए की जा सकती है।

सीडड्रिल (Seed drill) के माध्यम से बुवाई करना सबसे अच्छा रहता है, क्योंकि इससे बीज समान दूरी पर एवं समान गहराई पर पड़ता है। ज्वार का बीज बुआई के 5 से 6 दिन उपरांत अंकुरित हो जाता है। 

छिड़काव विधि से रोपाई के समय पहले से एकसार तैयार खेत में इसके बीजों को छिड़क कर रोटावेटर की मदद से खेत की हल्की जुताई कर लें। जुताई हलों के पीछे हल्का पाटा लगाकर करें। इससे ज्वार के बीज मृदा में अन्दर ही दब जाते हैं। जिससे बीजों का अंकुरण भी काफी अच्छे से होता है।  

ज्वार की फसल में खरपतवार नियंत्रण कैसे करें ?

यदि ज्वार की खेती हरे चारे के तोर पर की गई है, तो इसके पौधों को खरपतवार नियंत्रण की आवश्यकता नहीं पड़ती। हालाँकि, अच्छी उपज पाने के लिए इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण करना चाहिए। 

ज्वार की खेती में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक और रासायनिक दोनों ही ढ़ंग से किया जाता है। रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए इसके बीजों की रोपाई के तुरंत बाद एट्राजिन की उचित मात्रा का स्प्रे कर देना चाहिए। 

यह भी पढ़ें: किसान भाई ध्यान दें, खरीफ की फसलों की बुवाई के लिए नई एडवाइजरी जारी

वहीं, प्राकृतिक ढ़ंग से खरपतवार नियंत्रण के लिए इसके बीजों की रोपाई के 20 से 25 दिन पश्चात एक बार पौधों की गुड़ाई कर देनी चाहिए। 

ज्वार की कटाई कब की जाती है ?

ज्वार की फसल बुवाई के पश्चात 90 से 120 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कटाई के उपरांत फसल से इसके पके हुए भुट्टे को काटकर दाने के लिए अलग निकाल लिया जाता है। ज्वार की खेती से औसत उत्पादन आठ से 10 क्विंटल प्रति एकड़ हो जाता है। 

ज्वार की उन्नत किस्में और वैज्ञानिक विधि से उन्नत खेती से अच्छी फसल में 15 से 20 क्विंटल प्रति एकड़ दाने की उपज हो सकती है। बतादें, कि दाना निकाल लेने के उपरांत करीब 100 से 150 क्विंटल प्रति एकड़ सूखा पौैष्टिक चारा भी उत्पादित होता है। 

ज्वार के दानों का बाजार भाव ढाई हजार रूपए प्रति क्विंटल तक होता है। इससे किसान भाई को ज्वार की फसल से 60 हजार रूपये तक की आमदनी प्रति एकड़ खेत से हो सकती है। साथ ही, पशुओं के लिए चारे की बेहतरीन व्यवस्था भी हो जाती है। 

ज्वार की फसल को प्रभावित करने वाले प्रमुख रोग और कीट व रोकथाम 

ज्वार की फसल में कई तरह के कीट और रोग होने की संभावना रहती है। समय रहते अगर ध्यान नहीं दिया गया तो इनके प्रकोप से फसलों की पैदावार औसत से कम हो सकती है। ज्वार की फसल में होने वाले प्रमुख रोग निम्नलिखित हैं।

तना छेदक मक्खी : इन मक्खियों का आकार घरेलू मक्खियों की अपेक्षा में काफी बड़ा होता है। यह पत्तियों के नीचे अंडा देती हैं। इन अंडों में से निकलने वाली इल्लियां तनों में छेद करके उसे अंदर से खाकर खोखला बना देती हैं। 

इससे पौधे सूखने लगते हैं। इससे बचने के लिए बुवाई से पूर्व प्रति एकड़ भूमि में 4 से 6 किलोग्राम फोरेट 10% प्रतिशत कीट नाशक का उपयोग करें।

ज्वार का भूरा फफूंद : इसे ग्रे मोल्ड भी कहा जाता है। यह रोग ज्वार की संकर किस्मों और शीघ्र पकने वाली किस्मों में ज्यादा पाया जाता है। इस रोग के प्रारम्भ में बालियों पर सफेद रंग की फफूंद नजर आने लगती है। इससे बचाव के लिए प्रति एकड़ भूमि में 800 ग्राम मैन्कोजेब का छिड़काव करें।

सूत्रकृमि : इससे ग्रसित पौधों की पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं। इसके साथ ही जड़ में गांठें बनने लगती हैं और पौधों का विकास बाधित हो जाता है। 

रोग बढ़ने पर पौधे सूखने लगते हैं। इस रोग से बचाव के लिए गर्मी के मौसम में गहरी जुताई करें। प्रति किलोग्राम बीज को 120 ग्राम कार्बोसल्फान 25% प्रतिशत से उपचारित करें।

ज्वार का माइट : यह पत्तियों की निचली सतह पर जाल बनाते हैं और पत्तियों का रस चूस कर पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे ग्रसित पत्तियां लाल रंग की हो कर सूखने लगती हैं। इससे बचने के लिए प्रति एकड़ जमीन में 400 मिलीग्राम डाइमेथोएट 30 ई.सी. का स्प्रे करें।

स्वीट कॉर्न की खेती से किसानों को काफी लाभ होगा, सिर्फ इन बातों का रखें खास ख्याल

स्वीट कॉर्न की खेती से किसानों को काफी लाभ होगा, सिर्फ इन बातों का रखें खास ख्याल

कृषक भाई स्वीट कॉर्न की खेती कर के शानदार मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। भारत ही नहीं विदेशों में भी इसे काफी पसंद किया जाता है। चाहें कैसा भी मौसम हो स्वीट कॉर्न का स्वाद सब की जुबां पर रहता है। विशेष तौर पर पहाड़ों की सेर के समय और बारिश के दौरान स्वीट कॉर्न को बड़े ही चाव से खाया जाता है। बतादें, कि स्वीट कॉर्न मक्के की मीठी किस्म है। इसकी फसल के पकने से पूर्व ही दूधिया अवस्था में इसकी कटाई की जाती है। स्वीट कॉर्न भारत के साथ-साथ विदेश में भी बेहद पसंद किया जाता है। ऐसी स्थिति में किसान भाई इसकी खेती कर बेहतरीन मुनाफा अर्जित कर सकते हैं।

स्वीट कॉर्न की खेती किस तरह होती है

स्वीट कॉर्न की खेती मक्का की खेती की भांति ही होती है। स्वीट कॉर्न की खेती में मक्का की फसल पकने से पूर्व ही तोड़ दी जाती है। इस वजह से किसानों को बेहद शीघ्रता से अच्छी कमाई मिलती है। स्वीट कॉर्न के साथ-साथ फूलों की खेती करके किसान एक ही वक्त में दो गुना ज्यादा धन कमाने के लिए गेंदा, ग्लेडियोलस एवं मसालों की सहफसली खेती भी कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त आप एक खेत में पालक, मटर, गोभी और धनिया भी उगा सकते हैं।

ये भी पढ़ें:
जानिये कम लागत वाली मक्का की इन फसलों को, जो दूध के जितनी पोषक तत्वों से हैं भरपूर


स्वीट कॉर्न को अधिक समय तक स्टोर करके ना रखें

स्वीट कॉर्न की फसल कटाई एक बेहद ही आसान प्रक्रिया है। बतादें, कि फसल कटाई के लिए तैयार तब होती गई जब भुट्टों से दूधिया पदार्थ निकलने लगता है। सुबह अथवा शाम में स्वीट कॉर्न की कटाई करें, इससे फसल अधिक समय तक तरोताजा रहेगी। तुड़ाई पूर्ण होने पर इसको मंडियों में बेच दें। स्वीट कॉर्न को ज्यादा दिनों तक स्टोर करके न रखें, क्योंकि इससे इसकी मिठास कम हो जाएगी।

 

किसान इन बातों का विशेष ख्याल रखें

  • जब आप इसकी खेती करते हैं, तो आप मक्का की उन्नत किस्मों को ही चुनें।
  • कीट-रोधी किस्मों को कम समयावधि में पकना चाहिए।
  • खेत की तैयारी के दौरान जल निकासी की समुचित व्यवस्था सुनिश्चित करें, ताकि फसल में जल भराव न हो।
  • स्वीट कॉर्न वैसे तो संपूर्ण भारत में उगाई जाती है, परंतु उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा पैदावार होती है।
  • स्वीट कॉर्न की बुवाई रबी एवं खरीफ दोनों ही सीजनों में की जा सकती है।

अप्रैल माह में करें मूंग की खेती बेहतर उपज के साथ होगा खूब मुनाफा

अप्रैल माह में करें मूंग की खेती बेहतर उपज के साथ होगा खूब मुनाफा

रबी फसलों की कटाई अब लगभग पूरी हो चुकी है। इसके साथ ही किसान अब अगली फसलों की तैयारी में जुट गए हैं। इन दिनों देश के कई हिस्सों में किसान मूंग की खेती करने की तैयारी कर रहे हैं। 

हालांकि, कई बार किसानों को ये शिकायत रहती है की उन्हें मनचाही पैदावार नहीं मिली। जिस वजह से उन्हें अच्छा मुनाफा नहीं हो पाता है। 

आज की इस खबर में हम आपको कृषि सलाहकारों द्वारा बताए गए कुछ खास तरीके बताएंगे, जिससे आपको अच्छी पैदावार मिल सकती है। 

खेत को तैयार करना बेहद जरूरी

किसी भी चीज की खेती करने से पहले खेत को तैयार करना बेहद जरूरी है। कृषि सलाहकारों की मानें तो मूंग की बेहतर पैदावार लेने के लिए सबसे पहले खेतों की गहरी जुताई कर मिट्टी को पलट देना चाहिए। 

ये भी पढ़े: भूमि विकास, जुताई और बीज बोने की तैयारी के लिए उपकरण

फिर दो बार कल्टीवेटर से खेत की मिट्टी को ढीला करें। फसलों को दीमक से बचाने के लिए अंतिम जुताई से पहले 1.5% क्विनाफॉस पाउडर 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में फैलाएं, फिर जुताई करके मिट्टी में मिला दें। 

मूंग के सही बीज का चयन करना बेहद जरूरी 

मूंग की खेती में सही बीजों का चुनाव काफी महत्वपूर्ण है। कृषि सलाहकारों की मानें तो किसानों को गर्मी के महीनों के दौरान संकर बीजों का चयन करना चाहिए। 

उत्पादकता के अलावा, संकर बीजों में उच्च तापमान सहनशीलता भी होती है। अगर आप सही बीजों का चयन करते हैं तो आपकी पैदावार भी अच्छी होगी, जिससे आप अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे। 

किसान भाई उचित बीजों का उपचार करें 

ग्रीष्मकालीन मूंग की बुवाई में 20-25 किलोग्राम प्रति एकड़ मूंग लेना चाहिए, जिसे 3 ग्राम थायरम फफूंदनाशक दवा से प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करने से बीज और भूमि जन्य बीमारियों से फसल सुरक्षित रहती है। 

इसके अलावा आप इफको की सागरिका, नैनो डीएपी से भी बीज उपचारित करा सकते हैं। इसके अलावा 600 ग्राम राइज़ोबियम कल्चर को किसी पात्र में लेकर 1 लीटर पानी में डाल दें। साथ ही 250 ग्राम गुड़ के साथ मिश्रित कर गर्म कर लें, जिसके ठंडा होने पर बीज को उपचारित कर छांव में सुखा लें और बुवाई कर दें। 

किसान भाई सही उर्वरकों का प्रयोग करें 

अगर संभव हो तो पहले मिट्टी का परीक्षण करें, ताकि आप आवश्यक उर्वरक और खाद डाल सकें। वैसे तो रबी के मौसम में मिट्टी में डाला गया उर्वरक कुछ हद तक मूंग की फसल के लिए कारगर होता है। 

लेकिन, इसके बावजूद खेतों में कम से कम 5 से 10 टन गोबर या कम्पोस्ट जरूर डालें। इससे भविष्य की फसलों को भी फायदा होगा। 

ये भी पढ़े: जायद में मूंग की इन किस्मों का उत्पादन कर किसान कमा सकते है अच्छा मुनाफा

इसके अलावा, मूंग की खेती के दौरान 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस, 20 किलोग्राम पोटेशियम, 25 किलोग्राम सल्फर और 5 किलोग्राम जस्ता का भी इस्तेमाल करें। 

मूंग की सिंचाई का सही समय

दरअसल, ग्रीष्मकालीन मूंग को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है। मूंग की फसल 25 से 40 डिग्री तक तापमान तक सहन कर सकती है। 

हालांकि, यदि फूल आने की अवधि के दौरान सूखे की स्थिति में इसकी सिंचाई की जाए, तो उपज में काफी वृद्धि होगी। 

अप्रैल माह में बोई जाने वाली जिमीकंद की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

अप्रैल माह में बोई जाने वाली जिमीकंद की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की आधे से ज्यादा आबादी आज भी खेती-किसानी पर आश्रित है। यही वजह है की यहां बड़े पैमाने पर खेती की जाती है। 

जहां पहले किसान पारंपरिक फसलों को अधिक अहमियत देते थे। वहीं, अब किसान धीरे-धीरे ज्यादा मुनाफा देने वाली फसलों की खेती कर रहे हैं। जिमीकंद इसी प्रकार की फसलों में से एक है।

जिमीकंद को उत्तर भारत के बहुत से राज्यों में ओल भी कहा जाता है। अप्रैल महीने की शुरुआत में किसान इस फसल की खेती कर पांच गुना मुनाफा कमा सकते हैं। 

कृषि वैज्ञानिकों का जिमीकंद को लेकर क्या कहना है 

कृषि वैज्ञानिक प्रमोद कुमार के अनुसार, जिमीकंद की खेती से किसान काफी शानदार कमाई कर सकते हैं। जिमीकंद की खेती शुरू करने का सबसे अच्छा वक्त अप्रैल है। उन्होंने बताया कि ओल की खेती के लिए सिंचाई व्यवस्था बेहतर होनी चाहिए। 

इसके अतिरिक्त इसमें ऑर्गेनिक खाद्य का उपयोग करना चाहिए, जिससे फसल अत्यंत अच्छी होती है। क्योंकि, बरसात का मौसम जुलाई में चालू होता है। इस वजह से किसानों को वक्त रहते सिंचाई व्यवस्था कर लेनी चाहिए। 

उन्होंने बताया कि जिमीकंद की फसल 7 से 8 महीने में पककर तैयार हो जाती है। अप्रैल में बुवाई के पश्चात नवंबर में फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। उन्होंने बताया कि एक कट्ठे में जिमीकंद की खेती कर किसान 20 से 25 हजार रुपए तक आसानी से कमा सकते हैं। 

जिमीकंद की खेती के लिए उपयुक्त मृदा का चयन महत्वपूर्ण 

प्रमोद कुमार ने बताया कि इसकी खेती के लिए सबसे पहले उपयुक्त मृदा का चयन करना अत्यंत आवश्यक है। किसानों के लिए जिमीकंद की खेती के लिए रेतीली दोमट प्रकार की मृदा की तलाश करनी चाहिए, जिसमें जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो और जिसमें कार्बनिक पदार्थ हों। 

ये भी पढ़ें: जिमीकंद की खेती से जीवन में आनंद ही आनंद

एक बार जब उपयुक्त मिट्टी का चयन हो जाए, तो दो फीट की दूरी पर और 40 मीटर के गड्ढों में जिमीकंद की बुवाई करें। इसके लिए दो केजी के जिमीकंद को चार भागों में काटकर एक एक गड्ढे में मिट्टी से एक इंच नीचे लगा सकते है।

किसान भाई इस बात का रखें विशेष ध्यान

इसमें किसानों को इस बात का खास ध्यान रखना जरूरी है, कि कटे हुए ओल में गढ्ढा हो। ये ओल देसी ओल की तुलना में पांच गुना बड़ा होता है। देसी ओल जहां तीन वर्ष में पककर तैयार होता है। 

वहीं, ये प्रभेद के ओल आठ महीने में तैयार हो जाते हैं। इसकी खेती के लिए एनपीके (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटैशियम) का अनुपात 100:60:80 का होना चाहिए। इसके साथ सप्ताह में एक बार पटवन करना जरूरी है, जिसके बाद 20 से 23 दिन में इसके पौधे निकलने लगते हैं।

जिमीकंद कितने समय में तैयार हो जाता है 

उन्होंने कहा कि यदि आप 140 क्विंटल जिमीकंद लगाएंगे तो आठ महीने में ये 500 क्विंटल हो जाएगा। इस प्रकार के जिमीकंद को उगाना काफी आसान है। क्योंकि इसे कीड़े या जानवरों से कोई हानि नहीं पहुंचती है। 

ये भी पढ़ें: सूरन की खेती में लगने वाले रोग और उनसे संरक्षण का तरीका

जिमीकंद का एक 500 ग्राम का तुकड़ा आठ महीने में 2 से 2.5 किलो तक हो जाता है। उन्होंने बताया कि बजार में इसको बड़ी आसानी से 40 रुपये प्रति किलो में बेचा जा सकता है। अब इस हिसाब से किसान इससे काफी अच्छी आय कर सकते हैं।

खरीफ के सीजन में यह फसलें देंगी आप को कम लागत में अधिक फायदा, जानिए इनसे जुड़ी बातें

खरीफ के सीजन में यह फसलें देंगी आप को कम लागत में अधिक फायदा, जानिए इनसे जुड़ी बातें

हम जानते हैं कि खरीफ की फसल बोने का समय चल रहा है। इस मौसम में किसान खरीफ की विभिन्न फसलों से काफी लाभ कमाते हैं और बारिश के मौसम में किसान सिंचाई की लागत से बच सकते हैं। जून का आधा महीना बीत चुका है और जुलाई आने वाला है। ऐसे में यह समय खरीफ की फसलें बोने के लिए उपयुक्त माना जाता है। किसान इस समय में औषधीय पौधों की खेती करके भी अधिक लाभ कमा सकते हैं। क्योंकि यह मौसम औषधि पौधों के लिए उपयुक्त माना जाता है। अभी खरीफ की फसलें बोने का समय चल रहा है। इसमें किसान धान, मक्का, कपासबाजरा और सोयाबीन जैसी विभिन्न फसलों की खेती में करते हैं। मानसून आने के साथ ही इन फसलों की रोपाई बुवाई में तेजी आई है। ऐसे में कुछ किसान उपरोक्त खरीफ की फसलें उगा रहे हैं और कुछ किसान इससे हटकर कई औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैं। ऐसा करने का किसानों का उद्देश्य केवल कम लागत में अधिक मुनाफा प्राप्त करना है। औषधीय पौधों की खेती करने से किसान को अधिक लाभ मिलता है। वही सरकार के द्वारा किसानों को मदद भी दी जाती है। इस वजह से किसानों का ध्यान औषधीय पौधों की खेती करने की और अग्रसर हो रहा है।

ये भी पढ़ें: प्राकृतिक खेती और मसालों का उत्पादन कर एक किसान बना करोड़पति
देश के किसान इस समय मेडिसिनल प्लांट्स की खेती भी कर रहे हैं। इनकी मांग बाजार में अधिक होने के कारण किसानों को इनकी अच्छे दाम मिलते हैं। वहीं किसानों को सरकारी मदद भी मिलती है। इस समय जिन औषधीय पौधों की खेती की जा सकती है, उनमें सतावर, लेमन ग्रास, कौंच, ब्राह्मी और एलोवेरा प्रमुख रूप से हैं।

कौंच की खेती करने से फायदा :-

कौंच एक झाड़ीनुमा पौधा होता है, जो कि मैदानी क्षेत्र में पाया जाता है। इस पौधे की खेती किसान 15 जून से लेकर 15 जुलाई के बीच में कर सकते हैं। 1 एकड़ में कौंच की खेती करने में करीब 50 से 60 हजार रुपए का खर्च आता है जबकि कमाई प्रति एकड़ 2 से 3 लाख रुपए तक होती है। इसकी बुवाई के लिए प्रति एकड़ 6 से 8 किलो बीज की जरूरत होती है।

ये भी पढ़ें: कमजोर जमीन में औषधीय पौधों की खेती

ब्राह्मी की खेती की जानकारी :

ब्राह्मी का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार की दवाएं बनाने में किया जाता है। यह एक लोकप्रिय औषधीय पौधा है। इसकी खेती करने के लिए बारिश कम समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। यह एक ऐसा पौधा है जिसकी डिमांड हाल ही के वर्षों में काफी बढ़ी है। किसान इस वक्त ब्राह्मी के साथ एलोवेरा की खेती भी कर सकते हैं। इसकी खेती जुलाई से लेकर अगस्त के बीच में की जाती है। कई कंपनियां इस पौधे की खेती करने के लिए किसानों को सीधे कॉन्ट्रैक्ट देती हैं।

सतावर की खेती से किसानों को लाभ :

खरीफ के मौसम में किसान सतावर और लेमनग्रास जैसे औषधीय पौधों की खेती कर सकते हैं। दोनों की खेती अलग अलग समय पर की जाती है। लेमनग्रास की खेती के लिए फरवरी से लेकर जुलाई तक का समय उपयुक्त होता है। लेकिन शतावर के लिए अगला पखवाड़ा सबसे उपयुक्त माना जाता है। सतावर की खेती से किसान काफी अधिक फायदा कमाते हैं। वहीं लेमनग्रास की खेती करने से यह फायदा होता है कि इसे एक बार लगाने पर किसान इससे कई साल तक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।
खरीफ फसलों की खेती अब जलभराव वाले क्षेत्रों में भी होगी, कृषि मंत्री ने किसानों को दिया आश्वासन

खरीफ फसलों की खेती अब जलभराव वाले क्षेत्रों में भी होगी, कृषि मंत्री ने किसानों को दिया आश्वासन

खरीफ फसलों की खेती अब जलभराव वाले क्षेत्रों में भी होगी, कृषि मंत्री ने किसानों को दिया आश्वासन हरियाणा के ज्यादातर गांव में जलभराव के कारण किसान फसल की पैदावार नहीं कर पाते. ये दिक्कत अक्सर बारिश के मौसम में देखने को मिलती है. सरकार किसानों को खुशहाल करने के लिए खास इसी योजना पर काम कर रही है. सरकार चाहती है कि बारिश के कारण किसानों को दिक्कत न हो जिस वजह से ऐसे क्षेत्रों को पहले कृषि योज्य बनाया जाएगा फिर किसान वहा पर खरीफ फसलों की पैदावार कर पाएंगे. इस संबंध में जेपी दलाल जो की हरियाणा के कृषि एवं पशुपालन मंत्री है उन्होंने ने कहा कि,"प्रदेश में जलभराव से प्रभावित भूमि को कृषि योग्य बना कर किसानों को खुशहाल किया जाएगा". जिसके लिए जलभराव वाले क्षेत्रों में सौर ऊर्जा की मदद से जल निकासी प्रणाली योजना के आधार पर पानी निकालकर पास के किसी नाले में डाला जाएगा.

ये भी पढ़ें: भारत सरकार ने खरीफ फसलों का समर्थन मूल्य बढ़ाया
जलभराव से 10 लाख हेक्टेयर भूमि प्रभावित हरियाणा सरकार की कोशिश है की हर एक क्षेत्र जिसमे की जलभराव के कारण किसान खेती करने में असमर्थ रहे है उन सभी क्षेत्रों में सौर ऊर्जा जल निकास प्रणाली योजना के द्वारा उन्हें खेती लायक बनाया जाएगा. घुसकानी में करीब 1 करोड़ 10 लाख की लागत से बने हुए सौर ऊर्जा जल निकासी प्रणाली योजना का शुभांरभ करने के लिए कृषि एवं पशुपालन मंत्री आए थे. उन्होंने कहा है कि प्रथम चरण में 1 लाख जलभराव की जमीन को सुधारने का लक्ष्य रखा गया है, जिसकी शुरुआत गांव घुसखानी से की गई है. करीब 10 लाख हेक्टेयर भूमि जलभराव होती है.जिसके लिए पाइप लाइन डालकर पंप सेटअप लगाकर सारा पानी नालों में बहा दिया जाएगा. जिसके बाद किसान उन खेतो में खेती कर पाएंगे. कृषि मंत्री जेपी दलाल ने कहा कि,"हम कुछ समय में इस समस्या से निजात पा लेंगे".
Kharif Tips: बारिश में घर-बागान-खेत में उगाएं ये फसल-साग-सब्जी, यूं करें बचत व आय में बढ़ोतरी

Kharif Tips: बारिश में घर-बागान-खेत में उगाएं ये फसल-साग-सब्जी, यूं करें बचत व आय में बढ़ोतरी

इसे प्रकृति का मानसून ऑफर समझिये और अपने घर, बगिया, खेत में लगाएं मानसून की वो फसल साग-सब्जी, जिनसे न केवल घरेलू खर्च में हो कटौती, बल्कि खेत में लगाने से सुनिश्चित हो सके आय में बढ़ोतरी। लेकिन यह जान लीजिये, ऐसा सिर्फ सही समय पर सही निर्णय, चुनाव और कुशल मेहनत से संभव है। घर की रसोई, छत की बात करें, इससे पहले जान लेते हैं मानसून की फसल यानी खरीफ क्रॉप में मुख्य फसलों के बारे में। खरीफ की यदि कोई मुख्य फसल है तो वह है धान

धान के उन्नत परंपरागत बीज मुफ्त प्रदान करने वाले केंद्र के बारे में जानिये

(Paddy Farming: किसानों को इस फार्म से मुफ्त में मिलते हैं पांरपरिक धान के दुर्लभ बीज) जबलपुर निवासी, अनुभवी एवं प्रगतिशील युवा किसान ऋषिकेश मिश्रा बताते हैं कि, बारिश के सीजन में धान की रोपाई के लिए अनुकूल समय, बीज, रोपण के तरीके के साथ ही सिंचन के विकल्पों का होना जरूरी है।

ये भी पढ़ें: मध्यप्रदेश के केदार बाँट चुके हैं 17 राज्यों के हजारों लोगों को मुफ्त में देसी बीज

धान (dhaan) के लिए जरूरी टिप्स (Tips for Paddy)

खरीफ क्रॉप टिप्स (Kharif Crop Tips) की बात करें, तो वे बताते हैं कि शुरुआत में ही सारी जानकारी जुटा लें, जैसे खेत में ट्रैक्टर, नलकूप आदि के साथ ही कटाई आदि के लिए पूर्व से मजदूरों को जुटाना, लाभ हासिल करने का बेहतर तरीका है। समय पर डीएपी, यूरिया, सुपर फास्फेट, जिंक, पोटास आदि का प्रयोग लाभ कारी है। धान की प्रजाति की किस्म का चुनाव भी बहुत सावधानी से करना चाहिए।

ये भी पढ़ें: स्वर्ण शक्ति: धान की यह किस्म किसानों की तकदीर बदल देगी ऋषिकेश बताते हैं कि, एक एकड़ के खेत में बोवनी से लेकर कटाई की मजदूरी, बिजली, पानी, ट्रैक्टर, डीजल आदि पर आने वाले खर्चों को मिलाकर, जुलाई से नवंबर तक के 4 से 5 महीनों के लगभग 23 से 24 हजार रुपये के कृषि निवेश से, औसतन 22 क्विंटल धान पैदा हो सकता है। मंडी में इसका समर्थन मूल्य 1975 रुपये प्रति क्विंटल था। ऐसे में कहा जा सकता है कि प्रति एकड़ पर 20 से 21 हजार रुपये की कमाई हो सकती है। खरीफ सीजन की मेन क्रॉप धान की रोपाई वैसे तो हर हाल में जुलाई में पूर्ण कर लेना चाहिए, लेकिन लेट मानसून होने पर इसके लिए देरी भी की जा सकती है बशर्ते जरूरत पड़ने पर सिंचाई का पर्याप्त प्रबंध हो।

ये भी पढ़ें: तर वत्तर सीधी बिजाई धान : भूजल-पर्यावरण संरक्षण व खेती लागत बचत का वरदान (Direct paddy plantation) कृषि के जानकारों की राय में, धान की खेती (Paddy Farming) में यूरिया (नाइट्रोजन) की पहली तिहाई मात्रा को रोपाई के 58 दिन बाद प्रयोग करना चाहिए।

खरीफ कटाई का वक्त

जून-जुलाई में बोने के बाद, अक्टूबर के आसपास काटी जाने वाली फसलें खरीफ सीजन की फसलें कही जाती हैं। जिनको बोते समय अधिक तापमान और आर्द्रता के अलावा परिपक़्व होने, यानी पकते समय शुष्क वातावरण की जरूरत होती है।

घर और खेत के लिए सब्जियों के विकल्प

खरीफ की प्रमुख सब्जियों की बात करें तो भिंडी, टिंडा, तोरई/गिलकी, करेला, खीरा, लौकी, कद्दू, ग्वार फली, चौला फली के साथ ही घीया इसमें शामिल हैं। इन बेलदार सब्जियों के पौधे घर की रसोई, दीवार से लेकर छत पर लगाकर महंगी सब्जियां खरीदने के खर्च में कटौती करने के साथ ही सेहत का ख्याल रखा जा सकता है।

ये भी पढ़ें: बारिश में लगाएंगे यह सब्जियां तो होगा तगड़ा उत्पादन, मिलेगा दमदार मुनाफा वहीं किसान खेत के छोटे हिस्से में भिंडी, तोरई, कद्दू, करेला, खीरा, लौकी, के साथ ही फलीदार सब्जियों जैसे ग्वार फली लगाकर एक से सवा माह की इन सब्जियों से बेहतर रिटर्न हासिल कर सकते हैं।

साग-सब्जी टिप्स

घर में पानी की बोतल, छोटे मिट्टी, प्लास्टिक, धातु के बर्तनों में मिट्टी के जरिये जहां इन सब्जियों की बेलों को आकार दिया जा सकता है, वहीं खेत में मिश्रित खेती के तरीके से थोड़े, थोड़े अंतर पर रसोई के लिए अनिवार्य धनिया, अदरक जैसी जरूरी चीजें भी उगा सकते हैं। घरेलू उपयोग का धनिया तो इन दिनों घरों में भी लगाना एक तरह से नया ट्रेंड बनता जा रहा है।
बारिश के चलते बुंदेलखंड में एक महीने लेट हो गई खरीफ की फसलों की बुवाई

बारिश के चलते बुंदेलखंड में एक महीने लेट हो गई खरीफ की फसलों की बुवाई

झांसी। बुंदेलखंड के किसानों की समस्या कम होने की बजाय लगातार बढ़ती जा रहीं हैं। पहले कम बारिश के कारण बुवाई नहीं हो सकी, अब बारिश बंद न होने के चलते बुवाई लेट हो रहीं हैं। इस तरह बुंदेलखंड के किसानों के सामने बड़ी परेशानी खड़ी हो गई है। मौसम खुलने के 5-6 दिन बाद ही मूंग, अरहर, तिल, बाजरा और ज्वर जैसी फसलों की बुवाई शुरू होगी। लेकिन बुंदेलखंड में इन दिनों रोजाना बारिश हो रही है, जिससे बुवाई काफी पिछड़ रही है।

ये भी पढ़ें: किसान भाई ध्यान दें, खरीफ की फसलों की बुवाई के लिए नई एडवाइजरी जारी

बारिश से किसानों पर पड़ रही है दोहरी मार

- 15 जुलाई को क्षेत्र के कई हिस्सों में करीब 100 एमएम बारिश हुई, जिससे किसानों ने थोड़ी राहत की सांस ली और किसान खेतों में बुवाई की तैयारियों में जुट गए। लेकिन रोजाना बारिश होने के चलते खेतों में अत्यधिक नमी बन गई है, जिसके कारण खेतों को बुवाई के लिए तैयार होने में वक्त लगेगा। वहीं शुरुआत में कम बारिश के कारण बुवाई शुरू नहीं हुई थी। इस तरह किसानों को इस बार दोहरी मार झेलनी पड़ रही है।

ये भी पढ़ें: Soyabean Tips: लेट मानसून में भी पैदा करना है बंपर सोयाबीन, तो करें मात्र ये काम

नमी कम होने पर ही खेत मे डालें बीज

- खेत में फसल बोने के लिए जमीन में कुछ हल्का ताव जरूरी है। लेकिन यहां रोजाना हो रही बारिश से खेतों में लगातार नमी बढ़ रही है। नमी युक्त खेत में बीज डालने पर वह बीज अंकुरित नहीं होगा, बल्कि खेत में ही सड़ जाएगा। इसमें अंकुरित होने की क्षमता कम होगी। बारिश रुकने के बाद खेत में नमी कम होने पर ही किसान बुवाई कर पाएंगे।

ये भी पढ़ें:
किसानों के लिए खुशी की खबर, अब अरहर, मूंग व उड़द के बीजों पर 50 प्रतिशत तक की सब्सिडी मिलेगी

रबी की फसल में हो सकती है देरी

- खरीफ की फसलों की बुवाई लेट होने का असर रबी की फसलों पर भी पड़ता दिखाई दे रहा है। जब खरीफ की फसलें लेट होंगी, तो जाहिर सी बात है कि आगामी रबी की फसल में भी देरी हो सकती है।